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Showing posts from September, 2009

वो तारा देखा तुमने ?

वो तारा देखा तुमने ? चमकता सा , दमकता सा … वो तारा यहाँ भी है मीलों दूर तुम हो कहीं पर ये आसमान तो एक है इस सृष्टि की तरह क्या कर रही होगी तुम इस वक़्त ? बर्फ सी ठंड मैं कंबल मैं लिपटी हुई अकेलेपन से जूझती हुई अपने आप से रूठी हुई या किसी की यादों के हसीन पल को समेटे हुए खुली आँखों मैं ख्वाब भी होंगे कुछ अनसुलझे सवाल भी होंगे जो भी हो रहा होगा उस तारे ने तो देखा होगा मैं भी कुछ अकेला हूं तुम्हारी यादों मैं खोया हूं अभी देखा था छत से वो तारा यहाँ भी है मीलों दूर तुम हो कहीं मेरे लिए ही बनाई गयी ये तारा भी जानता है यही देखो ज़रा ध्यान से आसमान को …

हर रात हो इश्क़ की रात

एक तपिश सी थी जब तुमको छुआ था सर्द चाँद रात मैं जब उस गर्मी मैं तुम्हारे होठों ने मेरे होठों से कुछ कहना चाहा था मगर चुपके से छू लिया था मेरे होठों को फिर कुछ आग भी लगी थी दो भीगे जिस्मों मैं आज अब्र कह रहा है की कुछ छींटें गीरेंगी क्यों ना हम भी भीग जाए इस गीली रात के साए मैं , फिर रात को निचोड़ लेंगे और मोहब्बत के रंगों मैं भिगो देंगे , अपने तन - मन को यही खेल खेलेंगे जब तक है साथ हर रात हो इश्क़ की रात हर सहर हो मुस्कुराती हुई