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Showing posts from February, 2011

शब भर रहे

शब भर रहे बहके बहके ख्वाब आँख खुलती रही ज़हन खुलता गया सन्नाटे के शोर से वो जो बारिश की छत पटाहत थी गरज के कह निकली थी क्यों देखते हो ख्वाबों को नीद की आगोश मैं जब वापस गया पुराना ख्वाब तकिये की सिलवटों मैं खो गया नया ख्वाब आने को था फिर से टूटने के लिए . .