शब भर रहे बहके बहके ख्वाब आँख खुलती रही ज़हन खुलता गया सन्नाटे के शोर से वो जो बारिश की छत पटाहत थी गरज के कह निकली थी क्यों देखते हो ख्वाबों को नीद की आगोश मैं जब वापस गया पुराना ख्वाब तकिये की सिलवटों मैं खो गया नया ख्वाब आने को था फिर से टूटने के लिए . .
Poems in Urdu/Hindustani by Sandeep Kulshrestha (Ashfan)