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About

मेरा नाम है संदीप कुलश्रेष्ठ. तखल्लुस है "अशफान".एक लापरवाह कवी या शायर कह लीजिये या फिर कोई नाम न दीजिये. बस एक ख्वाब देखने वाला अदना सा इंसान हूँ मैं. इश्क मोहब्बत और इस खूबसूरत दुनिया के बारे मैं लिखने मैं दिलचस्पी रखता हूँ. आइये आप आमंत्रित हैं मेरी इस दुनिया मैं!

This is Sandeep Kulshrestha. My poetic name for Urdu/Hindi poetry is "Ashfan". You may refer to me as a careless poet. But then, what's in a name? I am just a normal human being who dreams. I write on love, passion and this beautiful world around. You are welcome in my world!

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शहर बंद है (There is a lockdown)

शहर बंद है शोर बंद है कहर बंद है देश बंद है सरहद बंद है रकीब बंद है दोस्त बंद हैं करीब बंद हैं नसीब बंद हैं फ़ासले बंद हैं हौसले बंद हैं  नज़दीकियाँ बंद हैं सब नज़रबंद है जो खुली है वो आहिस्तगी है वो पुरसुकून दिल की आवाज़ है जो कह रही है की फिर से हयात के कुछ नये मानी निकालो कुछ नये मरसिम जोड़ो माज़ी को एक ख्वाब की तरह दरकिनार करो जो खुली है वो सोच की गहराई है अहसासों की अंगड़ाई है जज़्बात की शाइस्तगी है हवा का झोंका ये कह के अभी गया कुछ देर साँस भी तो ले लो थोड़ी सी In Roman, Shahar Band Hai Shor Band Hai Kahar Band Hai Desh Band hai Sarhad Band Hai Rakeeb Band Hain Dost Band Hain Kareeb Band Hain Naseeb Band Hain Faasle Band Hain Hausle Band Hain Nazdeekiyan Band Hain Sab Nazarband Hain Jo Khuli hai Wo aahistagi hai wo pursukoon dil ki awaaz hai jo kah rahi hai ki phir se hayaat ke kuch naye maani nikalo kuch naye marasim jodo maazi ko ek khwaab ki tarah darkinar karo Ko Khuli hai wo soch ki gahrai hai ahsaason ki angdai ha

तुम से ही मेरा जीवन है

तुम्हारे जाने के बाद जीवन का सारांश समझ आ गया वो जो अपने होते है उन्ही से जीवन होता है एक छोटी सी बात पे मैने कुछ बोल दिया तुमने उसको बड़ा बना कर बेवजह मोल दिया किसकी ग़लती कौन जाने बस देखता हूँ दरवाज़े को कोई दस्तक दे शायद क्या करूँ , किससे बात करूँ अकेला हूँ पर भीड़ है बौहत थक गया हूँ अपने से लड़ते लड़ते तुम्हारे बिना एक प्याला चाय का भी स्वाद नहीं देता बस तुम हो सामने तो ज़िंदगी कट जाएगी तुम से ही मेरा जीवन है

Mulakaat

- संदीप कुलश्रेष्ठ इक मुलाकात से दो ख़याल मिलते हैं और ख़यालों के दौर मैं कुछ उलझनें सुलझ जाती हैं कुछ सुलझी हुई खामोशियाँ बिखर जाती है सवरने के लिए कुछ पैघाम आते है कुछ ख्वाहिशें मुस्कुराती है कुछ नये वादे मुकम्मल होते हैं कुछ माज़ी मैं क़ैद ही रहते हैं रहने ही चाहिए, शायद आओ इक मुलाक़ात करें और रुख़ करें साहिल की जानिब जहाँ मंज़िल का कोई फलसफा नहीं बस बैठे ही रहना है ख़यालों के दरमियाँ