- संदीप कुलश्रेष्ठ
इक मुलाकात से
दो ख़याल मिलते हैं
और ख़यालों के दौर मैं
कुछ उलझनें सुलझ जाती हैं
कुछ सुलझी हुई खामोशियाँ
बिखर जाती है
सवरने के लिए
कुछ पैघाम आते है
कुछ ख्वाहिशें मुस्कुराती है
कुछ नये वादे मुकम्मल होते हैं
कुछ माज़ी मैं क़ैद ही रहते हैं
रहने ही चाहिए, शायद
दो ख़याल मिलते हैं
और ख़यालों के दौर मैं
कुछ उलझनें सुलझ जाती हैं
कुछ सुलझी हुई खामोशियाँ
बिखर जाती है
सवरने के लिए
कुछ पैघाम आते है
कुछ ख्वाहिशें मुस्कुराती है
कुछ नये वादे मुकम्मल होते हैं
कुछ माज़ी मैं क़ैद ही रहते हैं
रहने ही चाहिए, शायद
आओ इक मुलाक़ात करें
और रुख़ करें साहिल की जानिब
जहाँ मंज़िल का कोई फलसफा नहीं
बस बैठे ही रहना है
ख़यालों के दरमियाँ
और रुख़ करें साहिल की जानिब
जहाँ मंज़िल का कोई फलसफा नहीं
बस बैठे ही रहना है
ख़यालों के दरमियाँ
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