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Tohfe

Main usko tohfe deta hoon kabhi shampoo to kabhi aata ya sabun ya ghar ka bana khaana ek baar kuch kalam bhi diye the kabhi khoobsoorat guldaan nahi diye ya sukoon dene wali filmon ki DVD aur kuch na sahi chandni raatien bhi na de paaya Ye mera tariqa hai  kuch kahne ka kya kahna hai magar mujhe pata nahin ye harf jo hai "kuch"  bohat chhota sa hai "wasee" main mumkin ye kainaat hai uske tohfe kuch muktalif hote hain wo apnee gamzada tasveerein  jo ki apne phone se kheenchtee hai wo mujhe bhejtee hai uske tohfe yahin tak nahin hai wo mujhe ek samandar bhar ke qahqahe bhi nazar karti hai usko mil bhi jaate hain  aise mauke jab ham saath hote hain usko mere tohfe pasand aate hain (aisa usne kaha) wo mujhe ishq ka hadia pesh-e-khidmat karti hai aisa ishq jo bataya na jaye ye ishq se bhi khoobsoorat hai magar ye ishq bhi nahin lekin ye kuch aur bhi nahi wo mere diye hue shampoo se apnee zulfein dh...

For a special friend

Kuch ahsaas ka jashn hai Kuch Jahan ki pashemani Dhoop na nikle, Baadlon se ishq farmati hai wo Ik khwabida tanhai se masruf Hai kabhi Aur kabhi ruhani tasavvur se Wo nazuk awaaz ki Mallika Jab hazaron khwahishon ki baat kare To aankh band karke Kisi aur jahan main kho jayein Ye man kahta Hai Wo jo khalish hai unki aankhon main awaaz banke ik parwaaz dhoondi hai kisi aur manzar ki jaanib

रेल की पटरी

मेरे घर पे पीछे एक रेल की पटरी गुज़रती है या यूँ कहो की लोग गुज़रते हैं कुछ लोग तो हैं ट्रेन मैं सफ़र करने वाले कुछ पटरी को रास्ता समझ कर बात-चीत करते हुए गुज़रते हुए मैं जब भी बाल्कनी मैं खड़े होकर चाय की प्याली लिए सुबह रेल गाड़ियों को निहारता हूँ तो कुछ लोग मेरी इमारत को देखते हैं नज़र पॅड ही जाती है ना चाहते हुए भी उनकी तब शायद मैं भी उनके सफ़र का हिस्सा बन जाता हूँ उन भागते हुए पेड़ों की तरह जो रास्ते मैं हर मुसाफिर को मिलते हैं जो उनको रास्ता दिखाते हैं मैं तो कोई रास्ता नही दिखाता बस ठिठक जाता हूँ समय की तरह दिन मैं शायद 25-30 ट्रेन आती हैं हॉर्न की आवाज़ से अब मंज़िल पता चलती है ये शायद पुणे वाली शताब्दी गयी हमेशा जल्दी मैं रहती है कम्बख़्त पॅसेंजर ट्रेन तो मेरे घर के पीछे रुक जाती है उसको सिग्नल भी कोई नही देता लोग कूद कर अंगड़ाई लेते हुए इधर उधर ताकते हैं नज़र मेरी भी पड़ती है उधर फिर सोचने लगता हूँ की ये सब कहाँ से चले थे और कहाँ जा रहे होंगे सफ़र कहाँ से कहाँ का है ये शहर इनकी मंज़िल है या एक और ट्रेन बदलनी...

Jism Tarasha tha tumhara

Aaj Tumhara Din Hai

शब भर रहे

शब भर रहे बहके बहके ख्वाब आँख खुलती रही ज़हन खुलता गया सन्नाटे के शोर से वो जो बारिश की छत पटाहत थी गरज के कह निकली थी क्यों देखते हो ख्वाबों को नीद की आगोश मैं जब वापस गया पुराना ख्वाब तकिये की सिलवटों मैं खो गया नया ख्वाब आने को था फिर से टूटने के लिए . .

वो तारा देखा तुमने ?

वो तारा देखा तुमने ? चमकता सा , दमकता सा … वो तारा यहाँ भी है मीलों दूर तुम हो कहीं पर ये आसमान तो एक है इस सृष्टि की तरह क्या कर रही होगी तुम इस वक़्त ? बर्फ सी ठंड मैं कंबल मैं लिपटी हुई अकेलेपन से जूझती हुई अपने आप से रूठी हुई या किसी की यादों के हसीन पल को समेटे हुए खुली आँखों मैं ख्वाब भी होंगे कुछ अनसुलझे सवाल भी होंगे जो भी हो रहा होगा उस तारे ने तो देखा होगा मैं भी कुछ अकेला हूं तुम्हारी यादों मैं खोया हूं अभी देखा था छत से वो तारा यहाँ भी है मीलों दूर तुम हो कहीं मेरे लिए ही बनाई गयी ये तारा भी जानता है यही देखो ज़रा ध्यान से आसमान को …