वो तारा देखा तुमने ? चमकता सा , दमकता सा … वो तारा यहाँ भी है मीलों दूर तुम हो कहीं पर ये आसमान तो एक है इस सृष्टि की तरह क्या कर रही होगी तुम इस वक़्त ? बर्फ सी ठंड मैं कंबल मैं लिपटी हुई अकेलेपन से जूझती हुई अपने आप से रूठी हुई या किसी की यादों के हसीन पल को समेटे हुए खुली आँखों मैं ख्वाब भी होंगे कुछ अनसुलझे सवाल भी होंगे जो भी हो रहा होगा उस तारे ने तो देखा होगा मैं भी कुछ अकेला हूं तुम्हारी यादों मैं खोया हूं अभी देखा था छत से वो तारा यहाँ भी है मीलों दूर तुम हो कहीं मेरे लिए ही बनाई गयी ये तारा भी जानता है यही देखो ज़रा ध्यान से आसमान को …
Poems in Urdu/Hindustani by Sandeep Kulshrestha (Ashfan)