रेत के बने मकानों मैं
फूलों का बगीचा नही होता
ना आती है दरीचों से
ताज़ा ख़ुशनुमा बहार
ना पनपते हैं
नये पुराने रिश्ते
वो मंज़र भी नही आता
जब आप किसी के हो जायें
रेत के मकान तो बनते हैं
ढह जाने के लिए
इस ज़िंदगी की तरह
ख्वाब भी ऐसे ही होते हैं
ख्वाबों मैं मगर
फूलों के बगीचे तो होते हैं !
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