Skip to main content

हाथ की उंगलियों की

हाथ की उंगलियों की खाल बदल रही है
बदलते मौसम का आगाज़ है
ये सिलसिला यूँ ही हर साल
ऐसे ही चलता रहेगा
जब तक अंजाम पे ना
पहुँच जाए ज़िंदगी
अकेले बैठ कर देख रहा हूँ
अपने हाथों को
कोई नही है यहाँ
जो मेरी पेशानी को छू के
सोंधे से अहसास
का दीदार करा दे
कोई तो हो कहीं
जो मेरे मिजाज़ को समझे
जिस्म मैं ये
बदलती हुई खाल पर
क्या कहूँ अब
वक़्त बदलता है
उमर बढ़ती है मुसलसल
ये फलसफा पता है सबको
मगर इस सूने से
कमरे मैं बैठ कर
यही सोच रहा हूं
कब तक चलेगा ये सिलसिला
कब कोई आएगा और
फिर अपने हाथ की
उंगलियों से बे-परवाह
हो पाऊँगा मैं…

Comments

Popular posts from this blog

तुम से ही मेरा जीवन है

तुम्हारे जाने के बाद जीवन का सारांश समझ आ गया वो जो अपने होते है उन्ही से जीवन होता है एक छोटी सी बात पे मैने कुछ बोल दिया तुमने उसको बड़ा बना कर बेवजह मोल दिया किसकी ग़लती कौन जाने बस देखता हूँ दरवाज़े को कोई दस्तक दे शायद क्या करूँ , किससे बात करूँ अकेला हूँ पर भीड़ है बौहत थक गया हूँ अपने से लड़ते लड़ते तुम्हारे बिना एक प्याला चाय का भी स्वाद नहीं देता बस तुम हो सामने तो ज़िंदगी कट जाएगी तुम से ही मेरा जीवन है

Jism Tarasha tha tumhara

ख़ुसरो वापस आ जाओ

ख़ुसरो कहाँ खो गये तुम ख्वाजा जी के साथ कब तक रहोगे इस सूखे हुए दरिया मैं एक ओस गिरा जाओ ख़ुसरो वापस आ जाओ ख़ुसरो ये दुनिया दर्द से पेहम है हर सू ग़म ही ग़म है फिर अपने कलाम की खुश्बू बिखेर जाओ ख़ुसरो वापस आ जाओ ख़ुसरो तुम्हारी कब्र पे खड़ा हूँ हाथ फैलाए तुम्हारा और औलिया का रिश्ता एक रूहानी मंज़र था हम इंसानों को भी वो राज़ बता जाओ ख़ुसरो वापस आ जाओ ख़ुसरो हर तरफ दहशत का साया है खुदा को भी नही बक्शा है किसी ने टुकड़े कर दिए हैं इस क़यनात के इन टुकड़ों को इश्क़ के बंधन मैं जोड़ जाओ ख़ुसरो वापस आ जाओ