सर्द मौसम मैं
वो देख रही थी
दरवाज़े को
किसी के आने की आहट थी
या एक ख्वाब था
उसने सोचा वो आएगा
और आते ही छु लेगा उसको
कस के पकड़ लेगा बाहों मैं
और जाने ना देगा कहीं...
जब उम्मीद का दिया बुझ गया
और उसने नज़र फेर ली दरवाज़े से
फिर पता नही क्या हुआ
बस एक अजीब सी खुश्बू समा गयी
नस-नस मैं
उसने मुड़ कर देखा
और बस देखती ही रह गयी
छेड़ के बोली थी
खुले दरीचों से आती हुई
ठंडी सबा
जल्दी से अपने जानम की
बाहों मैं समा जा
शायद कुछ हरारत का एहसास हो
और कुछ शरारत का आगाज़ हो
और दरवाज़ा भी हवा से बंद हो गया
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